बातों बातों में - bato bato me
हां, प्रतीक नाम वास्तविक है। उसका कहना है कि ये तो बस बातों बातों में हो गया, हम दोनों में से किसी का ऐसा इरादा नहीं था।
प्रतीक एक सीधा साधा जवान लड़का था। मैं उस समय पूना में नौकरी करती थी। प्रतीक के पापा और मेरे पापा दोस्त थे। जब प्रतीक का फोन मेरे पास आया तो मुझे उसके आने की बहुत खुशी हुई। वो मेनेजमेन्ट कर रहा था और उसके पास नौकरी का ऑफ़र आ गया था। वो एक प्रथम श्रेणी का विद्यार्थी था।
उसे सवेरे ही बस से पूना आना था। मैं उसे लेने के लिये बस स्टेण्ड आ गई। बीस बरस का जवान लड़का दूर से ही पहचान में आ गया। वो मुझे देखते ही लिपट गया।
"रीता दीदी, तू आई है मुझे लेने..."
"अरे कैसे नहीं आती ... तू जो आ रहा था !"
एक जवान लड़के का लिपटना मुझे बहुत भाया... मैंने जोश में उसे चूम लिया, उसने भी प्रति उत्तर में मुझे चूमा। मैं उसे घर ले आई।
"रीता दीदी , इतने बड़े घर में तुझे डर नहीं लगता..."
"नहीं, बिल्कुल नहीं, मेरे जैसी काली लड़की पर कौन ध्यान करेगा?"
"नहीं, वो कोई गुण्डा, बदमाश ...?"
"वो तो सुन्दर लड़कियों को खतरा होता है ... मैं तो उसे और पकड़ लूँ !"
वो यह सुन कर हंस दिया। हम दोनों नाश्ता करके बतिया रहे थे। दोनो ही एक डबल बेड पर आराम कर रहे थे।
"दीदी, शादी क्यूँ नहीं कर लेती ... 26 साल की हो रही हो !"
"तू कर ले यार मुझसे शादी ... मैं तेरा पूरा ख्याल रखूंगी ! बस ?"
वो फिर से हंस पड़ा,"यार, मजाक मत कर ... तेरी जैसी प्यारी दीदी से शादी कौन नहीं करेगा... कोई बॉय फ़्रेन्ड नहीं है क्या?"
"तू है ना ... मेरा दोस्त बन जा और दीदी कहना छोड़ दे !"
"अरे तू तो दोस्त तो है ही, बड़ी है ना इसलिये दीदी कहता हूँ।"
"अरे मेरे भोले पंछी ... तुझे कब समझ में आयेगा कि दीदी के साथ कुछ नहीं कर सकते, जबकि दोस्त के साथ सब कुछ कर सकते हैं !"
"हां, पर हम तो दोस्त है ना, अच्छा अब मुझे अब सोने दे !"
"सो लेना यार, आज तो रविवार है ... अच्छा तूने कोई लड़की पटाई या नहीं?"
"दीदी, तू है ना पटी पटाई ... और किसे पटाना है, वो तृप्ति तो मतलबी है, बस उसी का सारा काम करो !"
"कुछ किया उसके साथ... या यूं ही फ़ोकट में काम करता रहा ?"
"नहीं नहीं... मैं इतना बेवकूफ़ थोड़े ही हूँ, उससे आईसक्रीम तो खा ही लेता हूँ !"
"और दूसरी आईसक्रीम ...?"
मेरे स्वर में अब वासना का पुट आने लगा था। वो समझ गया मेरा इशारा...।
"दीदी, यूँ कोई हाथ थोड़े ना लगाने देता है... वो रेशमा तो बस मुझे आंख मार कर ही काम चला लेती है।"
मेरे दिल में बेईमानी आने लगी थी। मैं उसके पास खिसक आई।
"तूने कभी कहीं किसी लड़की को हाथ लगाया है ...?"
"कहां पर दीदी ...?"
मेरी सांसे तेज सी होने लगी। मैने हिम्मत करके उसे अपने सीने की ओर हाथ करके बताया।
" यहाँ पर ... !"
"अरे मारेगी नहीं वो मुझे ...?" वो हंसता हुआ बोला।
"पता है ! एक बार इसे छू ले तो वो मस्त हो जायेगी !"
मेरे सीने के उभारों को देख कर वो बोला,"तेरे तो बहुत बड़े है, इन्हें छू लूँ क्या... मारोगी तो नहीं तुम?"
"चल छू ले ... देख तुझे कैसा लगता है !"
उसने डरते डरते मेरे उभरी हुई चूचियों को हाथ लगाया। मैंने जानबूझ कर एक मस्ती की सिसकारी ली।
"आह, कितना मजा आया, थोड़ा और छू ले..." उसकी आंखो में चमक आ गई। उसकी सांस तेज होने लगी। उसने मेरे उरोजों की गोलाईयो को हाथ फ़ेर कर सहलाया। एक अनजाने से नशे में मैं खो सी गई। उसका लण्ड धीरे धीरे खड़ा हो गया।
"दीदी, आपको अच्छा लग रहा है क्या ... देखो मुझे भी जाने कैसा कैसा हो रहा है !"
"बुद्धू, अन्दर हाथ डाल कर छू ना..." मेरी चूत गीली होने लगी थी।
"तेरा टॉप तो इतना टाईट है कि बस ! दीदी इसे उतार दे तो छू सकता हूँ..."
मुझे लगा कि प्रतीक अब बहकने लगा है ... उसकी शरम दूर करने का बस यही मौका था।
"तू उतार दे ना ..."
उसने मेरी बनियान नुमा टॉप ऊपर खींच कर उतार दी। मेरे दोनों कबूतर बाहर आकर खिल उठे।
"पता है, मेरी मम्मी के भी ऐसे ही हैं ... !"
"ओफ़्फ़ोह, मम्मी की दुम, अब सहला ना !"
उसने ध्यान से मेरे स्तन देखा और मेरे चुचूक छू कर हिलाने लगा। मेरी आंखों में खुमारी आने लगी।
"दीदी, अरे बाप रे, कितने कड़े है ये दुद्धू..."
"ये मस्त गोले भी तो है ना ..." मैं और उससे चिपकने लगी।
"अरे दूर रह ना, मुझे दूध थोड़े ही पीना है"
"प्लीज पी ले ... इसे चूस ले..."
उसने मुझे देखा और मेरे बोबे को उसने अपने मुख में भर लिया। उसे चूसने लगा। मैं अपने आपे से बाहर हो गई और उसके ऊपर झूल सी गई और अपने उरोज उसके मुख में जोर से दबा दिये ।
"दीदी, ये क्या कर रही हो, मेरी सांस रुक रही है ..."
उसका कड़ा लण्ड मेरी चूत से टकरा गया। जींस के ऊपर से ही मैने रगड़ मार दी।
प्रतीक के मुख से आह निकल गई। मैंने भी अब प्यार से उसे अपने दूध को खूब चुसवाया।
"दीदी, इसमें तो बहुत मजा आता है ... तेरी जींस कितनी चुभ रही है, पजामा क्यों नहीं पहनती है?"
"हां यार ! चल इसे उतार देते हैं..."
"हट रे ... तू तो इतनी बड़ी लड़की है, नंगी हो जायेगी तो शरम नहीं आयेगी?" प्रतीक कुछ असमंजस में बोला।
"अरे तो कौन देख रहा है ? अपन दोनों ही तो हैं ना ... चल उतार देते हैं..."
मैंने पहल की और अपनी जीन्स उतार दी, मैं तो पूरी नंगी हो गई। नंगापन महसूस होने से मुझे एक बार तो लाज सी आई और मुझ में रोमान्च सा भर आया, मेरे रोंगटे जैसे खड़े हो गये।
"रीता, तू चादर लगा ले ना, इतनी बड़ी लड़की नंगी देख कर मुझे तो अजीब लग रहा है !"
"छोड़ ना, अपनी जींस तो उतार...!" मैने उसे उलाहना दिया।
उसने झिझकते हुये अपनी पैण्ट उतार दी और अपना हाथ लण्ड के आगे रख कर छुपा लिया। उसका सर झुका हुआ था,"दीदी, मुझे तो शरीर में जैसे सनसनी सी आ रही है, आप ये क्या करवा रही हैं...?"
मैं उससे जाकर लिपट गई। और अपना चेहरा उसके चेहरे के समीप कर दिया। उसकी महकती खुशबू मेरे नथुनों में समाने लगी। उसने भी मेरा ये पोज देख कर मेरे अधरों से अपने अधर मिला दिये। नीचे उसका लण्ड मेरे योनि द्वार पर दस्तक देने लगा था। पर वो इस मामले में नया था सो वो कुछ नहीं कर पा रहा था।
"प्रतीक, अपनी कमीज भी उतार दो ना, मेरी तरह नंगे हो जाओ... शरम ना करो ! प्लीज !"
उसने अपनी कमीज भी उतार दी।
"तुमने मेरे दूध पिया था ना, अब मुझे भी कुछ पीने दो...!"
"मेरे पास दुद्धू नहीं है, तो क्या पीयोगी...?"
"बस चुप ..."
मैं धीरे धीरे नीचे बैठने लगी और उसके लण्ड के पास पहुंच गई, वीर्य जैसी महक से मैं मदहोश सी हो गई। उसके लण्ड को पकड़ कर मैंने उसकी चमड़ी ऊपर कर दी।
"दीदी, मुझे शरम आ रही है ... यह क्या कर रही हो...?"
मैंने वासनायुक्त निगाहों से उसे मुस्करा कर देखा और उसका लाल सुपाड़ा अपने मुख में रख लिया। लण्ड नया था उसकी स्किन सुपाड़े से लगी हुई थी। उस
स्किन को चीर कर उसे मर्द बनाना था। मैने उसके डण्डे को कस कर पकड़ लिया और झटके दे देकर मुठ मारने लगी। मेरा मकसद उसकी त्वचा चीरना था। कुछ झटकों से उसकी स्किन चिर गई और खून निकल पड़ा। वो दर्द से कराहा भी ... पर अब स्किन फ़टने के बाद मैं धीरे धीरे मुठ मारने लगी,। मुख में सारा खून चूस लिया, उसे खून का पता भी नहीं चला कि उसकी स्किन फ़ट चुकी है। उसके लण्ड की चमड़ी पूरी पलट गई और लण्ड पूरा खुल गया।
मैं उसका लण्ड बड़े चाव से चूसने लगी। उसे दर्द के बीच एक अनोखा सा मजा आने लगा था। मेरी आंखों में वासना के लाल डोरे खिंच चुके थे। काफ़ी दिनों से मेरी चुदाई नहीं हुई थी, इसलिये मेरी चूत बहुत ही लपालपा रही थी। बस लण्ड चूत में घुसा लूं यही लग रहा था।
"बड़ा जोरदार है रे तेरा लण्ड..."
"छीः दीदी गाली होती है ये तो ..."
"इसे लण्ड ही कहते हैं और मेरी इसको चूत कहते है... याद रखना ..."
"दीदी, आज तो तू सारी गन्दी बातें कर रही है !"
"गन्दी !!!, अच्छा तुझे मजा नहीं आ रहा है क्या...?"
"हां वो तो आ रहा है... पर ये नीचे चूसना ... इससे तो सू सू करते हैं ना और तू है कि इसे चूसे जा रही है ... रोक मत ना और जोर से चूस ..."
"देखा मजा आ रहा है ना ... अब तू भी मेरी चखेगा ..."
"वो कैसे ... क्या तेरा लण्ड भी चूसूँ...?"
"अरे चल हट ... मेरी चूत की बात कर रही हूँ।"
मैंने उसका लण्ड छोड़ दिया और बिस्तर पर लेट गई। अपनी चूत खिसका कर एक तरफ़ कर दी। प्रतीक बिस्तर के नीचे बैठ गया और मेरी दोनों टांगों के बीच आ गया।
"ये देख ... इसे भी चूसना ..." मैंने नीचे हाथ अपने दाने पर लगाया और उसे बता दिया। उसके होंठ मेरी चूत से लगते ही मुझे झुरझुरी सा आ गई। उसकी जीभ लपलपा उठी और उसने मेरी पूरी चूत को चाट लिया। मैंने गुदगुदी के मारे टांगें और उठा ली। तभी उसकी जीभ मेरे गाण्ड के छेद पर आ गई। आनन्द के मारे मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। वो भोला, भला क्या जाने कि क्या चाटना है। पर मुझे तो उसने मस्ती ला दी। तभी उसकी जीभ ने मेरे दाने को बुरी तरह से हिला डाला। जैसे तेज और तीखी चुभन सी हुई। हाय रे ! ये सब कितना अच्छा लग रहा था। मेरा अंग अंग तड़प उठा था। वो कभी मेरी गाण्ड का छेद चाट रहा था, तो कभी चूत में उसकी जीभ घुस पड़ती थी तो कभी मेरे दाने को दबा कर हिला कर मुझे घायल सा कर देता था।
"प्रतीक, अब मेरे पास आजा, मुझे प्यार कर...!"
"हां दीदी, मुझे भी देख कितनी मस्ती आ रही है ... ये लण्ड तो देख ना ... कैसा हो रहा है !"
मैने उसे बिस्तर पर लेटा दिया और हम दोनों एक दूसरे से लिपट पड़े। वो मेरे नीचे दबा हुआ जैसे छटपटा रहा था। मैं उसके ऊपर बैठ गई और उसका खड़ा डण्डे जैसा लण्ड थाम लिया। उसका लाल सुपाड़ा खून की एक बारीक धार से और लाल हो गया था। उसे मैंने अपनी चूत खोल कर अन्दर रख लिया।
"दीदी, ये क्या कर रही हो, सू सू को सू सू से मिला दिया?"
"आह्ह्ह, लण्ड चूत में घुसेड़ रही हूँ ... अब मत बोल, बस मजे ले ले !"
मैंने धीरे से उसे भीतर ले लिया और अन्दर घुसाने लगी। उसे जलन सी महसूस हुई, पर वो बोला कुछ नहीं, बस थोड़ा सा चेहरा बिगाड़ लिया। उसका लण्ड पूरा लेकर मैं उसके ऊपर झुक गई। मेरे दोनों स्तन उसके चेहरे के नजदीक झूल गये।
"पकड़ ले इसे, मसल डाल..."
"कैसी बोलती हो दीदी, आह तू क्या कर रही है, बहुत मजा आ रहा है !"
मैं और झुक गई। उसने मेरे स्तन मलने शुरू कर दिये। मैंने अपने अधर उसके अधरों से मिला दिये। मैंने अनाड़ी दोस्त को दबोच कर चुदाई करनी चालू दी। हम दोनों एक दूसरे में खो चले, हमारी कमर ऊपर नीचे हो कर सम्भोग में लिप्त हो गई। मेरे साथ प्रतीक भी अपने जीवन काल का प्रथम सम्भोग कर रहा था, मस्ती में खो चुका था। हम खो से गये ... मुझे उसने जाने कब अपने नीचे दबोच लिया और चोदने लगा था। मेरे बाल मेरे चेहरे पर बिखर कर उलझ गये थे। दोनों तपते नंगे बदन तृप्ति की ओर बढ़ रहे थे, रफ़्तार तीव्र हो चली थी। मेरा तन जैसे रस से भर गया। जिस्म में मीठी सी गुदगुदी भर गई। मैंने अपने जिस्म को लहरा दिया और मेरा कामरस चू पड़ा... मैं झड़ने लगी... आनन्द से भरी पूरी ... आह्ह्ह
मैं झड़ती चली गई। जैसे मेरे ऊपर अब कोई पहाड़ सा बोझ आ पड़ा हो, जान पड़ रहा था। मैंने अपने आप को ढीला छोड़ दिया जाने वो कब तक मुझे चोदता रहा ...
मेरी तन्द्रा तब टूटी, जब प्रतीक एक तरफ़ झड़ कर लस्त सा पड़ गया था। मैंने अपनी एक टांग उठा कर उसकी कमर में डाल दी। उसका वीर्य मेरी चूत से निकल कर एक तरफ़ बहने लगा। मैंने अपनी बाहें भी उसके गले में डाल दी और उस पर अपना भार डाल कर सो गई।
"दीदी, उठो तो खाना तो खा लें अब, देखो दोपहर के दो बज रहे हैं।"
मैंने देखा तो प्रतीक तैयार हो कर खड़ा था। मैंने अपनी ओर देखा तो शरमा गई, अब तक नंगी पड़ी हुई थी। वो मेरे यौवन को देख कर फिर से ललचाने लगा था। उसे चूत का चस्का लग चुका था। मेरी चिकनी जांघें, काले काले से चमकीले चूतड़, काली झांटे सभी कुछ उसे बहुत उकसाने का काम कर रहे थे। मेरे गोल-गोल बड़े स्तन देख कर वो कसमसा रहा था।
"तू बड़ा लार टपका रहा है रे ... शाम है, रात है और फिर तनहाई भी है ... और करेंगे शाम को, दिल छोटा मत कर ... तेरी सू सू को नीचे कर ले..." फिर मैं खिलखिला उठी।
पाठको, यह बात तो गुप्त है, किसी को बताना नहीं। कोई जान जायेगा तो सभी मुझे चोद-चोद कर मेरा बेड़ा गर्क कर देंगे। ऐसा रिश्ता तो टॉप सीक्रेट होता है ...
आपकी
रीता शर्मा
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