Sunday, 3 February 2013

अंकल की प्यास - uncle ki pyaas

अंकल की प्यास - uncle ki pyaas

अंकल की प्यास
लेखिका : नेहा वर्मा

मेरे घर वाले जब इन्दौर में जब सेटल हुए तो मुझे पापा ने होस्टल में डाल दिया। होस्टल में रह कर मैंने बीएससी की पढ़ाई पूरी की थी। मेरे होस्टल के पास ही पापा के एक दोस्त रहते थे, पापा ने उन्हें मेरा गार्जियन बना दिया था। वो अंकल करीब ५७-५८ साल के थे। उनका बिजनेस बहुत फ़ैला हुआ था। एक तो उन्हें बिजनेस सम्हालना और फ़िर टूर पर जाना... उन्हें घर के लिये समय ही नहीं मिलता था। आन्टी नहीं रही थी... बस उनके दो लड़के थे, जो बिजनेस में उनका साथ देते थे। घर पर वो अकेले रहते थे।

उन्होने घर की एक चाबी मुझे भी दे रखी थी। मैं कम्प्यूटर के लिये रोज़ शाम को वहां जाती थी... अंकल कभी मिलते...कभी नहीं मिलते थे... उस दिन मैं जब घर गई तो अंकल ड्रिंक कर रहे थे और कुछ काम कर रहे थे... मैं रोज़ की तरह कम्प्यूटर पर अपने ईमेल चेक करने लगी...

आज अंकल मुझे घूर रहे थे... मुझे भी अहसास हुआ कि आज ...अंकल कुछ मूड में हैं...

"नेहा मुझे लगता है तुम्हें कम्प्यूटर की बहुत जरूरत है क्योंकि तुम रोज़ ही कम्प्यूटर प्रयोग करती हो !"

"हां अंकल... पर पापा मुझे अभी नहीं दिलायेंगे..."

"तुम चाहो तो ये कम्प्यूटर सेट तुम्हारा हो सकता है... पर तुम्हे मेरा एक छोटा सा काम करना पड़ेगा..." सुनते ही मैं उछल पड़ी...

"सच अंकल... बोलो बोलो क्या करना पड़ेगा..." मैं उठ कर अंकल के पास आ गई।

"कुछ खास नहीं... वही जो तुम पहले कितनी ही बार कर चुकी हो..."

"अरे वाह अंकल ...... तब तो कम्प्यूटर मेरा हो गया......" मैं चहक उठी।

"आओ... उस कमरे में..."

मैं अंकल के पीछे पीछे उनके बेड रूम में चली आई। उन्होने अन्दर से रूम को बन्द करके कुन्डी लगा दी। मुझे लगा कि अंकल कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं करने वाले हैं। मेरा शक सही निकला।

उन्होने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा "नेहा... मैं बरसों से अकेला हूं... तुम्हें देख कर मेरी मर्दों वाली इच्छा भड़क उठी है... प्लीज़ मेरी मदद करो..."

"अंकल... पर आप तो मेरे पापा के बराबर है..." मैंने कुछ सोचते हुए कहा। एक तो मुझे कम्प्यूटर मिल रहा था ...... पर अंकल ने ये क्यों कहा कि तुम पहले कितनी ही बार कर चुकी हो... अंकल को कैसे पता चला।

"सुनो नेहा ... तुम्हे मुझे कोई खतरा नहीं है... क्योंकि अब मेरी उमर नहीं रही... और फिर मेरा घर तो तुम्हारे लिये खुला है...तुम चाहो तो तुम्हारे दोस्त को भी यहा बुला सकती हो"

मैं समझ गई कि अंकल ये सब पता चल चुका है... अचानक मुझे सब याद आ गया... शायद अंकल को मेरा ईमेल एड्रेस और पासवर्ड मिल गया था...जो गलती से मेज पर ही लिखा हुआ छूट गया था।

"अंकल... मेरा मेल पढ़ते है ना आप..." अंकल मुस्करा दिये। मैं उनकी छाती से लग गई।

" थैंक्स नेहा..." कह कर उन्होंने मेरे चूतड़ दबा दिये। मैंने अपने होंठ उनकी तरफ़ बढ़ा दिये... उन्होने मेरे होंठो से अपने होंठ मिला दिये... दारू की तेज महक आई... अंकल ने मेरी जीन्स ढीली कर दी... फिर मैंने स्वयं ही झुक कर उतार दी... टोप अपने आप ही उतार दिया। अंकल ने बड़े प्यार से मेरे जिस्म को सहलाना शुरु कर दिया। मेरे बोबे फ़ड़क उठे... ब्रा कसने लगने लग गई... पेंटी तंग लगने लगी... पर मुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ी... अंकल ने खुद ही मेरी पुरानी सी ब्रा खींच कर उतार दी और पैंटी भी जोश में फ़ाड़ दी।

"अंकल ये क्या... अब मैं क्या पहनूंगी..." मैंने शिकायत की।

"अब तुम मेरी रानी हो... तुम ये पहनोगी... नही... मेरे साथ चलना... एक से एक दिला दूंगा......" अंकल जोश में भरे बोले जा रहे थे। मुझे नंगी करके अंकल ने बिस्तर पर लेटा दिया। मेरे पांव चीर दिये और मेरी चूत पर अपने होन्ठ लगा दिये। मेरी चूत में से पानी निकलने लगा... चुदने की इच्छा बलवती होने लगी। मेरा दाना भी फ़ड़कने लगा... अंकल जीभ से मेरे दाने को चाट रहे थे... साथ में जीभ चूत में भी अन्दर जा रही थी। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। अब अंकल ने मेरे पांव और ऊपर उठा दिये...मेरी गाण्ड ऊपर आ गई... उन्होने मेरी चूतड़ की दोनो फ़ांके अपने हाथों से चौड़ा दी। और गाण्ड के छेद पर अपनी जीभ घुसा दी और गाण्ड को चाटने लगे। मुझे गाण्ड पर तेज गुदगुदी होने लगी।

"हाय अंकल... बहुत मजा आ रहा है..."

कुछ देर गाण्ड चटने के बाद उनके हाथ मेरे बदन की मालिश करने लगे...

अब मैं अंकल से लिपट पड़ी...उनकी कमीज़ और दूसरे कपड़े उतार फ़ेंके। उनका बदन एकदम चिकना था... कोई बाल नहीं थे... गोरा बदन... लम्बा और मोटा लण्ड झूलता हुआ। सुपाड़ा खुला हुआ ...लाल मोटा और चिकना। मैंने अंकल का लण्ड पकड़ लिया और दबाना शुरू कर दिया। अंकल के मुह से सिसकारी निकलने लगी।

"आहऽऽऽ नेहा... कितने सालों बाद मुझे ये सुख मिला है... हाय... मसल डाल..."

मैंने अंकल का लण्ड मसलना और मुठ मारना चालू कर दिया। वो बिस्तर पर सीधे लेट गये उनका लण्ड खड़ा हो चुका था... मेरे से रहा नहीं गया... मैं उनके ऊपर बैठ गई और चूत के द्वार पर लण्ड रख दिया। मैंने जोश में जोर लगा कर सुपाड़ा को अन्दर लेने की कोशिश करने लगी... पर लण्ड बार बार इधर उधर मुड़ जाता था... शायद लण्ड पर पूरी तनाव नहीं आया था।

"अंकल......ये तो हाय...जा नहीं रहा है..." मैं तड़प उठी...

" बस ऐसे ही मुझे रगड़ती रहो... लण्ड मसलती रहो...।" मैं अंकल से ऊपर ही लिपट पड़ी और चूत को उनके लण्ड पर मारने लगी। पर वो नहीं घुस रहा था। मैं उठी और उनके लण्ड को मुख में ले कर चूसने लगी... उन्के लण्ड मे बस थोड़ा सा उठान था। सीधा खड़ा था पर नरम था... अंकल अपने चूतड़ उछाल उछाल कर मेरे मुख को ही चोदने लगे। मैंने उनका सुपाड़ा बुरी तरह से चूस डाला और दांतो से कुचला भी... नतीजा... एक तेज पिचकारी ने मेरे मुख को भिगा दिया...अंकल ज्यादा सह नहीं पाये थे। अंकल जोर लगा लगा कर सारा वीर्य मेरे मुख में निकाल रहे थे। मैंने कोशिश की कि ज्यादा से ज्यादा मैं पी जाऊं। मैं उनका लण्ड पकड़ कर खींच खींच कर रस निकालने लगी... अंकल का सारा माल बाहर आ चुका था। उनका सारा जोश ठंडा पड़ चुका था... उनका लण्ड और भी ज्यादा मुरझा गया था। और वो थक चुके थे।

मैं पलंग से उतर कर नीचे बैठ गई और दो अंगुलियों को चूत मे डाल कर अन्दर घुमाने लगी... कुछ ही देर में मैं भी झड़ गई। मैं जल्दी से उठी और बाथ रूम में जा कर मुंह हाथ धो आई... अंकल दरवाजे पर खड़े थे...

" नेहा... तुम्हे कैसे थैंक्स दूं... आज से ये घर तुम्हारा है...आओ भोजन करें..."

"अंकल... पर आपका तो खड़ा होता ही नहीं है... फिर भी इतना ढेर सारा पानी कैसे निकला..."

"बेटी... बस ये ही तो खड़ा नहीं होता है... इच्छायें तो वैसी ही रहती हैं... इच्छायें शांत हो जाती है तो ही काम में मन लगता है..."

बाहर से नौकर को बुला कर डिनर लगवा दिया... और कहा," मेरी कार ले जाओ ... और ये कम्प्यूटर सेट नेहा बेटी के होस्टल में लगा दो।

मैं खुश थी कि बिना चुदे ही कम्प्युटर मुझे मिल गया। डिनर के बाद मैं होस्टल जाने लगी तो एक बार अंकल ने फिर से मुझे गले लगा लिया।

"अंकल ... प्लीज़ आप दुखी मत होईये... आपकी नेहा है ना... आपका पूरा खयाल रखेगी..." अंकल को किस करके मैं होस्टल की तरफ़ चल पड़ी।

अंकल मुझे जाते हुए प्यार से निहारते रहे......

nehaumavermaa@gmail.com

मेरे अंकल - mere uncle

मेरे अंकल - mere uncle
लेखिका : रोमा शर्मा

आप सबने मेरी कहानी

"मेरे साथ पहली बार"

पढ़ी है उसके लिए मुझे बहुत सारे मेल आये, मुझे बहुत अच्छा लगा, पर मैं सबके मेल का जवाब नहीं दे पाई उसके लिए में माफी चाहती हूँ।

अब मैं अपनी कहानी पर आती हूँ।

वो ठण्ड के दिन थे, मैं अपनी मौसी के घर गई हुई थी, मौसी के घर के पास ही एक अंकल अरुण रहते हैं, उनसे मेरी काफी अच्छी जान-पहचान है और वो मौसाजी के काफी अच्छे दोस्त भी हैं। उनका हमारी मौसी घर में काफी आना जाना है। अरुण अंकल हमारे घर में मैच देखने आते थे।

अंकल और मेरी बहुत बातें होती थी, वो हमेशा मेरे लिए कुछ न कुछ लाते ही थे।

एक दिन मौसी ने मुझसे कहा- अनीता आन्टी (अरुण अंकल की बीवी) के पास मेरा एक बैग रह गया है, जाकर ले आ !

मैं अरुण अंकल के घर गई तो आंटी रसोई में काम कर रही थी, मैंने उनसे कहा- आपके पास मौसी का बैग रह गया है, वो मौसी ने मंगवाया है।

आंटी ने कहा- हाँ है, वो बैग मेरे कमरे के मेज पर रखा है, मैं लाती हूँ।

पर उनके हाथ गंदे थे तो उन्होंने मुझे कहा- जाओ कमरे में जाकर खुद ले लो, मेरे हाथ गंदे हैं।

मैं कमरे में गई, बैग ढूंढने लगी कि तभी अचानक अरुण अंकल बाथरूम से निकले, उन्होंने सिर्फ अन्डरवीयर पहना हुआ था।

मैं उन्हें देखती ही रह गई और वो मुझे देख कर मुस्कुराए और फिर अपना तौलिया लपेट लिया।

मैं उन्हें ऐसे ही देखती रही, उनके अन्डरवीयर में वो लंड का उभार बहुत अच्छा लग रहा था, मैं उन्हें सिर्फ़ अन्डरवीयर में देखना चाहती थी तो मैं वहाँ पर बैग ढूंढने का बहाना करके इधर-उधर होने लगी। अंकल कुछ देर तो वैसे ही तौलिया लपेटे खड़े रहे और फिर वो अपनी अलमारी के पास गये और अपना तौलिया हटा कर कपड़े निकालने लगे।

मैं फिर उन्हें देखने लगी, मुझे ऐसा लग रहा था मानो उनके अन्डरवीयर में कोई बहुत बड़ी चीज हो।

फिर अंकल ने अचानक मुझसे कहा- तुम जो ढूंढ रही हो, वो मिला या नहीं?

मैंने कहा- हाँ अंकल, मिल ही गया, बस वो आपके ही पास है।

बैग अंकल के पीछे ही मेज पर रखा था, मैं बैग लेने के लिए अंकल के पास गई और मैंने अपना पैर मुड़ने का बहाना किया और उनके ऊपर गिर गई।

अब मैं उनकी बाहों में थी, अनजाने में मेरे हाथ ने उनके लंड को छू लिया तो अंकल मुस्कुराने लगे और मैं भी मुस्कुराने लगी।

फिर मैं उठी और बैग लेकर घर आ गई।

दो दिन के बाद अनीता आंटी अपने मायके चली गई और अंकल खाना खाने के लिए हमारे घर आने लगे वो जब घर आते तो मैं उनकी पैंट की तरफ ही देखती रहती।

एक दिन जब अंकल रात को खाने के लिए नहीं आये तो मौसी ने मुझसे कहा- जाओ, अरुण अंकल को बुला लाओ।

तो मैं अंकल के घर गई तो अंकल कंप्यूटर पर बैठ कर कुछ देख रहे थे।

मैंने उनसे कहा- चलो अंकल, घर चल कर खाना खा लो।

तो अंकल ने कहा- रोमा, आज मेरा खाना यहीं पर ला दो, मुझे थोड़ा काम है।

मैंने कहा- ठीक है।

और मैं खाना लेकर आई तो अंकल ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझसे कहा- रोमा, उस दिन तुम मुझे अन्डरवीयर में देख कर मुस्कुरा क्यों रही थी?

मैंने उनसे कहा- आप भी तो मुस्कुरा रहे थे ! मैंने आपको पहली बार उस हालत में देखा था अंकल ! और आपके अन्डरवीयर में वो इतना मोटा-मोटा और बड़ा सा क्या था?

अंकल ने मुझे कहा- वो मेरा लंड है रोमा !

मैंने कहा- इतना बड़ा और मोटा थोड़े ही होता है?

तो अंकल ने कहा- यकीन नहीं आता तो मैं दिखाऊँ क्या?

मैंने हाँ कर दी- दिखाओ !

तब अंकल ने तुरंत ही अपनी पैंट और अन्डरवीयर नीचे सरका दी।

उस वक्त अंकल का लंड छोटा सा था तो मैंने उनसे कहा- यह तो इतना मोटा और बड़ा नहीं है। आप झूठ बोल रहे थे।

तो अंकल ने कहा- रोमा, तुम एक बार हाथ लगा दो, अभी बड़ा और मोटा हो जायेगा।

मैंने जैसे ही उनके लंड को हाथ लगाया, वो खड़ा होने लगा और मोटा भी हो गया। मैं उनके लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी और उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरे होंटों को चूमने लगे।

मैं भी यही चाहती थी तो मैं भी उन्हें चूमने लगी।

मैंने अंकल को अपने से अलग किया और कहा- आज नहीं अंकल, मुझे घर जाना है, मौसी मेरा इन्तजार कर रही होंगी।

तो अंकल ने मुझसे कहा- रोमा, क्या तुम मेरे साथ सेक्स करोगी?

मैंने हाँ कहा पर मैंने कहा- आज नहीं !

तब अंकल ने कहा- रोमा मैंने कल ऑफिस से छुट्टी ली है, कल करें क्या?

मैंने कहा- हाँ ठीक है।

और फिर मैं घर आ गई। मुझे तो कल का इन्तजार था।

अगले दिन मैंने मौसी से कहा- मैं अरुण अंकल के घर जा रही हूँ, उनके कंप्यूटर में कोई प्रोब्लम है, उन्होंने मुझे ठीक करने के लिए बुलाया था।

और मैं अंकल के घर पहुँच गई।

अंकल अन्डरवीयर में ही थे, उन्होंने मुझ से कहा- चलो, बेडरूम में चलते हैं।

हम बेडरूम में गए तो अंकल ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मुझे चूमना चालू कर दिया। मैं भी अब गर्म हो गई थी।

अंकल ने मेरा टॉप और जीन्स उतार दी और मेरे स्तन जोर जोर दबाने लगे। मुझे अब मजा आने लगा।

फिर उन्होंने मेरी ब्रा का हुक खोल कर उसे उतार दिया और मेरे चुच्चों को चूसने लगे और मैं उनका चेहरा अपने वक्ष पर दबाये जा रही थी।

अंकल का लंड खड़ा हो गया था और अन्डरवीयर से बाहर निकलना चाहता था। मैंने उनका अन्डरवीयर उतार दिया।

अंकल कहने लगे- रोमा, तुम बहुत प्यारी हो ! मेरा लंड पकड़ लो और सहलाओ इसे !

मैंने अंकल से कहा- अंकल, आप तो आंटी को खूब चोदते होंगे, कैसा लगता है उन्हें?

अंकल ने कहा- खुद चुदवा कर देख लो कि कैसा लगता है, पता चल जायेगा तुम्हें !

फिर अंकल ने मेरी पैंटी उतार दी, मैं नंगी ही शरमाती रही और अपनी चूत को छुपाती रही। पर जब अंकल ने मेरी चूत को खोल कर

अपने होंठ उस पर रखे तो मैं चहक उठी।

"अंकल ऐसे ना करो ! मुझे शर्म आती है !" मैं सिमटती हुई बोली।

अंकल ने कहा- इसी में तो मजा आयेगा !

और वो मेरी चूत को पागलों की तरह चूसने और चाटने लगे। फिर मैंने भी अंकल के बाल पकड़ कर उनका मुँह अपनी चूत में टिकाया और अंकल ने अपनी जीभ मेरी चूत में अन्दर तक घुसा दी।

मैं नीचे हाथ बढ़ा कर उनके लंड को पकड़ने की कोशिश करने लगी।

अंकल ने कहा- रोमा, अब तैयार हो जाओ चुदने के लिए !

और उन्होंने अपना लंड मेरी चूत के ऊपर रख दिया और अन्दर डालने लगे।

मैंने उनसे कहा- मुझे दर्द हो रहा है, थोड़ा धीरे करो !

अंकल ने प्यार से मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- थोड़ा सा दर्द तो शुरू में होगा, फिर तो बाद में मजे ही मजे हैं।

फिर अंकल ने धीरे धीरे लंड अन्दर डालना शुरू किया और एक जोर के झटके के साथ लंड अन्दर डाल दिया।

मुझे बहुत दर्द होने लगा तो अंकल मेरे ऊपर ही लेट कर मुझे प्यार करने लगे, मेरे होंठों को चूमने लगे और मेरे उरोज़ दबाने लगे। जब मेरा दर्द कुछ कम हुआ तो अंकल हल्के से और प्यार करते हुए धक्के मारने लगे। फिर मेरी चूत का दर्द मिठास में बदल गया और अंकल ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और जोर जोर से मुझे चोदने लगे।

इतने में मैं तो झड़ गई पर अंकल नहीं झड़ पाए थे, उन्होंने अपना लंड चूत से निकाला और मेरी चूत को चाटने लगे।

मैं वैसे ही बिस्तर पर पड़ी रही।

फिर अंकल ने मेरे चूचों के बीच में लंड डाल कर उनकी चुदाई की।

मैं फिर से गर्म हो गई थी, अंकल ने लंड को फिर मेरी चूत में डाला और जोर जोर से चोदने लगे।

अंकल पूरे जोश में आ गये और वो अब झड़ने वाले थे तो उन्होंने लंड को चूत से बाहर निकाला और मेरी चूत के ऊपर झड़ गए, और फिर मुझे गले लगा कर मेरे होंठों को चूमने लगे। अंकल और मैं काफी देर तक वैसे ही पड़े रहे, फिर मैं उठी और बाथरूम में जाकर खुद को साफ किया और घर आ गई।

यह थी मेरी अरुण अंकल के साथ चुदाई की दास्ताँ !

कैसी लगी आपको?

मुझे मेल करके जरूर बताइएगा।

रोमा

ro888ma@gmail.com

पेंटिंग टीचर - Painting Teacher

पेंटिंग टीचर  - Painting Teacher

मेरी उम्र 28 साल है। मैं दिल्ली में एक पेंटिंग टीचर हूँ और एक खास तरह की पेंटिंग सिखाता हूँ जिसका मैं आपको नाम नहीं बता सकता क्यूंकि हो सकता है कि यहाँ मुझे कुछ लोग पहचान जायें।

यह अन्तर्वासना में मेरी पहली कहानी है।

यह अभी पिछले महीने की ही बात है, मुझे एक महिला का फ़ोन आया- क्या आप पेंसिल स्केचिंग घर पर आकर सिखा सकते हैं?

मैंने उसे मना कर दिया यह कह कर कि मैं स्केचिंग अपने इंस्टिट्यूट पर सिखाता ही हूँ, घर जाकर नहीं सिखाता।

उसने पूछा- क्यों नहीं सिखाते?

मैंने बताया- हमारी पेंटिंग्स बहुत महंगी होती हैं और स्केचिंग में इतना पैसा नहीं मांग सकते इसलिए...

उसने कहा- ठीक है, थैंक यू।

बोल कर फ़ोन रख दिया।

दो दिन बाद उसका फ़ोन फ़िर आया- क्या आप लाइव स्केच सिखा सकते हैं? मुझे सीखना है।

मैंने उसे बताया- आप इंस्टिट्यूट में आ जाइए, मैं आपको सिखा दूँगा।

उसने कहा- नहीं, आप मेरे घर आकर सिखा दीजिये प्लीज !

मेरे कई बार मना करने के बाद भी वह आग्रह करती रही, उसने कहा- एक बार घर तो आ जाइए, मैं स्केचिंग के साथ पेंटिंग भी सीख लूँगी।

मैंने बताया- हमारी पेंटिंग्स बीस हजार से शुरु होती हैं।

उसने कहा- नो प्रॉब्लम !

कहकर दो दिन बाद की मीटिंग तय की।

मैं दो दिन बाद उसके घर गया, वह एक बड़ी सी कोठी में रहती थी। मैंने घण्टी बजाई तो एक नौकरानी ने दरवाज़ा खोला।

उसने मुझे सोफे पर बिठाया, पानी पिलाया और कहा- मैडम ऊपर बाथरूम में हैं, अभी आ जाएँगी।

थोड़ी देर बाद वह महिला नीचे आई। वह दिखने में एक 30-35 की उम्र वाली सामान्य महिला थी, मध्यम फिगर था, सांवली सी थी।

हमारी कुछ देर तक बात हुई, वह थोड़ी देर बाद बोली- न मुझे पेंटिंग सीखनी है और न ही स्केचिंग !

मैंने कहा- फिर आपने मुझे क्यों बुलाया?

उसने बताया- मुझे अपना लाइव पोर्ट्रेट बनवाना है !

मैंने कहा- मैंने आपको बताया था कि यह हम हमारे इंस्टिट्यूट में ही करते हैं, घर आकर नहीं।

मुझे थोड़ा गुस्सा सा आ रहा था।

उसने कहा- मुझे एक खास तरह का पेंसिल स्केच बनवाना है अपना जो मैं आपके इंस्टिट्यूट में आकर नहीं बनवा सकती थी।

मैंने पूछा- किस तरह का?

और उसने जो जवाब दिया उसे सुन कर मैं हतप्रभ रह गया, उसने कहा- जैसा लेओनार्दो ने टाइटैनिक मूवी में हीरोइन का बनाया था !

हालांकि मैंने पहले अपनी गर्लफ्रेंड का ऐसा पोर्ट्रेट बनाया था पर किसी और का कभी नहीं।

मैंने उसे मना किया और जाने लगा... पर वह अनुग्रह करती ही रही।

मैंने उससे पूछा- आपको अजीब नहीं लगेगा किसी अनजान आदमी के सामने बिना कपड़ों के आना?

उसने कहा- अनजान हो इसलिए आसान रहेगा, और यह मेरी एक पाश्विक सी फन्तासी रही है, जब से मैंने टाइटैनिक देखी, तबसे ऐसा पोर्ट्रेट बनवाने की इच्छा थी मेरी !

मुझे बहुत अजीब लग रहा था अभी भी ! फिर मुझे लगा कि यह सेक्स के लिए यह नाटक कर रही है इसलिए मैंने टालने के लिए उससे कहा- मैं पोर्ट्रेट बना दूँगा पर कुछ और नहीं करूँगा।

उसने पूछा- क्या मतलब है आपका?

मैंने कहा- मेरा मतलब सेक्स से है ! मैं वो नहीं कर पाऊँगा।

उसने कहा- प्लीज, आप मुझे गलत मत समझिये, मैं भी यह नहीं करना चाहती, उसके लिए मेरा बॉयफ्रेंड है।

मैं आपको बता दूँ कि वह एक तलाकशुदा महिला थी और अभी उसका बॉयफ्रेंड था।

मेरी हालत बहुत अजीब सी हो रही थी, मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था।

वह उठी और ऊपर चली गई और कुछ देर बाद अपनी नौकरानी को फ़ोन पर मुझे ऊपर भेजने को कहा।

मैं ऊपर उसके कमरे में गया, उसने नौकरानी को बुला कर मेरे लिए जूस मंगवाया। जब नौकरानी जूस रख कर जाने लगी तो उसने उसे कहा- अब ऊपर मत आना जब तक मैं ना बुलाऊँ।

हम थोड़ी देर तक बात करते रहे, फिर उसने पूछा- अब शुरु करें?

मैंने उसे बताया- मेरे पास स्केच-बुक और पेन्सिल नहीं है अभी !

उसने नौकरानी को बुला कर मुझसे सामान की लिस्ट बनवाकर उसे दे दी। उसने आधा घंटा लिया वापस आने में, वो सामान हमें देकर कर नीचे चली गई।

फिर वह उठी और बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाथरूम का दरवाज़ा खुला, मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था, वह सामने आई, उसने एक गाउन पहना हुआ था। मुझे अंदाजा हो गया था कि इसने इसके अन्दर कुछ और नहीं पहना है।

फिर थोड़ी देर बैठी रही और शर्म से बार बार मुस्कुराती रही।

फिर वह खड़ी हुई और गाउन उतार दिया।

मेरा दिल बहुत जोर से धड़कने लगा, ऐसा लग रहा था जैसे हार्ट अटैक हो जायेगा।

उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी, वह सोफे पर लेट गई जैसे मूवी में था और कमाल की बात तो यह कि उसने उससे मिलता जुलता लॉकेट भी ख़रीदा हुआ था और उसके बदन पर अभी सिर्फ वही था।

मेरा लण्ड उसी वक्त खड़ा हो गया था, मैं उससे नज़र नहीं मिला रहा था।

मैंने कांपते हाथों से स्केच-बुक और पेन्सिल उठाई और उसे देखकर थोड़ा-थोड़ा ड्रा करने लगा।

अभी भी मेरे हाथों को कांपता देखकर उसने पूछा- ...क्या हुआ?

मैंने कहा- मैं कंसन्ट्रेट नहीं कर पा रहा हूँ।

उसने मेरी पैंट का उभार देख लिया था !

थोड़ी देर तक यही चलता रहा, मैं ड्रा करता रहा पर अभी भी हाथ ठीक नहीं चल रहा था और पैंट एक टेंट की तरह खड़ी थी।

उसने फिर पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- कुछ नहीं।

वो खड़ी हुई और सीधे मेरे पास और मेरी पैंट की ज़िप खोल कर मेरा लिंग बाहर निकाल लिया और हिलाने लगी,

मैं 10-12 मिनट में स्खलित हुआ।

फिर उठ कर बोली- अब बनाओ।

और सबसे बड़ी बात कि अब मुझे ठीक लगने लगा था और यह भी यकीन हो गया था कि यह सच में सिर्फ पोर्ट्रेट ही बनवाना चाहती थी और कुछ नहीं।

मैंने भी अब बड़ी प्रोफेशनल तरीके से उसका पोर्ट्रेट बनाया और उसके साथ सेक्स का सोचा भी नहीं।

वह पोर्ट्रेट देख कर बहुत खुश हुई और जाते समय मेरे हाथ में दो हजार रूपये रख दिए।

उसके बाद उसने मुझसे 3-4 पोर्ट्रेट और भी बनवाए, सारे अलग अलग अवस्थाओं में ! और आखिरी दिन उसने मेरे लिए मुख्मैथुन भी किया।

अभी कुछ दिनों से उसका फ़ोन नहीं आ रहा है।

मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर लिखियेगा।

paintingartist@hotmail.com

उर्मिला भाभी के साथ मधुमिलन - urmila bhabhi se madhumilan


उर्मिला भाभी के साथ मधुमिलन  - urmila bhabhi se madhumilan
प्रेषक : राज ठाकरे

नमस्कार दोस्तो, आपने मेरी

सभी कहानियाँ पढ़ी होंगी और आपको पसंद भी आई होगी। आज मैं आपको एक और कहानी बता रहा हूँ और वो भी एकदम सच्ची !

हमारे घर के बाजू में एक शादीशुदा जोड़ा किराये से रहने के लिए आया था। भाईसाहब का नाम रतन जो दिखने में एकदम काला था लेकिन भाभी एकदम मस्त माल थी जिसका नाम उर्मिला था, उनका कद 5'3", स्तन 36", कमर 30" और कूल्हे 36" के होंगे। और सुन्दरता की बात करूँ तो भाभी दिखने में एकदम मस्त थी गोरी, स्मार्ट !

रतन भाईसाहब पेट्रोल पम्प पर काम पर जाते थे उनका समय करीब-करीब सुबह १० से रात के १० बजे तक रहता था ! हमारे घर वालों से वो जल्दी ही मिलजुल गए थे और मैं भी उनके यहाँ जाता आता रहता था ! वो मेरा ही हमउम्र था इसीलिए वो मेरा अच्छा दोस्त बन गया।

रात को रतन को पम्प से लेने के लिए मैं ही जाता था। हम वहाँ से निकलने के बाद रोज बार में दारू पीते थे और करीब 11 बजे तक घर पहुँचते थे। यह हमारा रोज का ही नाटक हो गया था। रोज भाभी मुझे बोलती थी कि आप इनके साथ बिगड़ गए हो।

ऐसा करीब एक महीने तक चलता रहा।

एक दिन हमको रतन के दोस्तों ने खूब पिला दी जिसकी वजह से उसको कुछ भी होश नहीं रहा, मैं उसको बाइक पर बिठा कर अपने साथ बांधकर घर लेकर आया और घर के अन्दर पलंग पर सुला दिया !

भाभी ने उनको देखा और हंसने लगी !

मैंने भाभी से पूछा- भाभी आप हंस क्यों रही हो?

भाभी बोली- रोज होश में आते आज होश भी नहीं बचा?

मैं बोला- होता है भाभी, कभी-कभी ज्यादा हो जाती है, उसमें हंसने की क्या बात है !

भाभी बोली- वो सब ठीक है लेकिन अब ये खाना खायेंगे या नहीं?

मैं बोला- अब तो ये सीधा कल सुबह ही खायेंगे !

इतना बोल कर मैं चलने लगा तो भाभी बोली- राजेश भैय्या, इनको कोई तकलीफ तो नहीं होगी ना ज्यादा पीने से?

मैं बोला- कुछ नहीं होगा भाभी, आप आराम से सो जाओ !

भाभी बोली- देखिये रोज होश में रहते हैं, आज कुछ ज्यादा ही पी गए ! प्लीज... आज के लिए आप यहीं सो जाओ ना !

मैं बोला- ठीक है... आपको कोई तकलीफ नहीं तो मैं यहीं सो जाता हूँ !

उन्होंने मेरे लिए नीचे बिस्तर बिछा दिया और वो पलंग पर रतन के साथ सो गई !

उनका कमरा छोटा था इसीलिए उनको रतन के साथ सोना पड़ा। उन्होंने रतन को दीवार से चिपका दिया और वो खुद मेरी तरफ़ पलंग पर सोई !

लाइट अभी भी जल रही थी जिस वजह से मुझे नींद नहीं आ रही थी ! मैं कभी इस तरफ कभी उस तरफ करवट ले रहा था !

आधे घंटे के बाद भाभी बोली- क्यों, आपको नींद नहीं आ रही क्या?

मैं बोला- भाभी, मुझे उजाले में सोने की आदत नहीं है इसीलिए नींद नहीं आ रही है !

भाभी बोली- ठीक है, मैं लाइट बंद कर देती हूँ !

और वो उठी और लाइट बंद करके सो गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

अब भी मुझे नींद नहीं आ रही थी !

ऐसा करते करते 2-3 घंटे बीत चुके थे रतन खर्राटे लेकर मस्त सोया हुआ था !

बाजु के घर में लाइट जल रही थी जिसकी वजह से थोड़ा बहुत अन्दर दिख रहा था ! अब भाभी पूरी गहरी नींद में थी ! नींद में ही वह करवट लेने लगी तो उनकी साड़ी का पल्लू नीचे मेरे ऊपर गिर गया ! अब मुझे उनके दोनों स्तन ब्लाउज में बंधे हुए दिख रहे थे !

यह देख कर मेरे दिमाग भाभी को छूने का और उनके स्तन को दबाने विचार आ रहा था जिस वजह से मेरा लंड खड़ा होने लगा। सोचा रतन बेवड़ा तो सोया हुआ है, क्यों ना मैं थोड़ा मजा कर लूँ !

मैं उनकी ओर पलट गया और अपना हाथ ऊपर पलंग की ओर करके उनकी कमर पर रख दिया और धीरे-धीरे करके उसे आगे बढ़ाते हुए ब्लाउज तक पहुँच गया। अब मैं उनके स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से सहला रहा था और एक हाथ से अपने खड़े लंड को मसल रहा था ! अभी भी भाभी नींद में ही थी !

मेरी हिम्मत और बढ़ गई, अब मैं अपने हाथ को उनके नंगे पेट पर भी घुमा रहा था जिसकी वजह से मेरा लंड आग-बबूला हो रहा था। अब मैं भाभी को चोदने की सोच रहा था।

मैंने उनकी ब्लाउज के बटन खोलने का सोचा और उन्हें खोलना शुरु किया। अब तक 1-2 ही बटन खोले थे कि मुझे ऐसे महसूस हुआ जैसे भाभी मुझे देख रही है !

मैं समझ गया कि भाभी को इस सब में मजा आ रहा है और उनको सब मालूम है कि मैं क्या कर रहा हूं।

मैं उठ कर बैठ गया और अब जानबूझ कर उन्हें अपनी बीवी समझते हुए उनके बटन खोलने लगा।

अब मैंने उनके सारे बटन खोल दिए थे ! उन्होंने अन्दर ब्रा नहीं पहना था इसीलिए उनकी दोनों चूचियाँ ब्लाउज से आज़ाद हो गई थी। गुलाबी चुचूक रोशनी में चमक रहे थे लेकिन भाभी अभी भी सोने का नाटक कर रही थी लेकिन मुझे मालूम था कि वह जगी हुई है!

मैंने उनके चुचूकों को चूसना शुरु किया और अपने दोनों हाथों से उनके स्तन को दबाना चालू रखा !

धीरे-धीरे भाभी की गरम सांसें मुझे महसूस होने लगी और चुपके से हौले-हौले उन्होंने अपनी आँखें खोली।

अब मुझे भाभी का कोई डर नहीं था और भाभी ने भी मेरे होंठों के साथ खेलना शुरु कर दिया था।

मैंने भाभी को अपने पास नीचे बिस्तर पर ले लिया और मेरे पैरों पर बिठा कर उनको होंठों को चूसना शुरु किया। अभी 5 मिनट ही हुए होंगे कि भाभी ने मेरे लंड को पकड़ने की कोशिश की तो मैंने भी अपना लंड उनको समर्पित कर दिया !

अब भाभी मेरे लंड को चड्डी के ऊपर से ही मसल रही थी और मैं उसकी चूचियों को मसल रहा था।

धीरे-धीरे मैंने उनकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर कमर तक उठा लिया जिसकी वजह से उनकी चड्डी मुझे साफ-साफ दिखाई दे रही थी।

मैंने उनकी चड्डी में अपना एक हाथ डाल दिया और अपनी उंगली उनकी चूत में डालने की कोशिश करने लगा तो वो सटाक से अन्दर चली गई क्योंकि उनकी चूत काफी गीली हो चुकी थी !

हम दोनों भी इशारों में बात कर रहे थे क्योंकि रतन हमारे नजदीक ही पलंग पर सोया हुआ था।

अब भाभी से बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो उन्होंने मेरी चड्डी उतार दी और इशारों में ही मेरे लंड को अपनी चूत में डालने के लिए मनाने लगी। मैं भी वक़्त की नजाकत देखते हुए तैयार हो गया।

अब भाभी खुद ही मेरे सामने अपनी चूत को फैला कर लेट गई और मुझे अपनी ओर खींचने लगी। मैंने भी उनके दोनों पैरों को अपने कन्धों पर ले लिया और अपने लंड को उनकी चूत के मुँह पर टिका दिया और एक जोरदार झटका मारते हुए पूरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अन्दर घुस गया जिसकी वजह से वो जोर से चिल्लाई- ...मर गई...आ ह्ह्ह... आह्ह्ह...

मैंने उनके मुँह पर अपना एक हाथ रख दिया और धीरे-धीरे अपने लंड को अन्दर-बाहर करने लगा। अब उसका दर्द कम हो गया था और वो मेरा साथ अपनी गांड को हिला-हिला कर दे रही थी।

वो मुझे अपनी ओर खींचने की कोशिश भी कर रही थी तब मैं समझ गया कि अब स्पीड बढ़ानी चाहिए और मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी। लंड चूत को चीरता हुआ गपागप अन्दर-बाहर हो रहा था। भाभी की सांसें तेज हो रही थी ! इधर लंड चूत को ठोक रहा था उधर हाथों से स्तन मर्दन हो रहा था !

करीब 15 मिनट तक यही चलता रहा और अगले ही पल भाभी ने मुझे कस कर पकड़ लिया तो मैं समझ गया कि भाभी का पानी छूट गया !

फिर भी मैं उनकी चूत को ठोक रहा था और वो निढाल होकर पड़ी थी !

उसके तुरंत 2-3 मिनट के बाद मुझे ऐसे लगा कि अब मैं भी झड़ जाऊँगा तो मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी और पूरा पानी भाभी की चूत में छोड़ दिया।

थोड़ी देर के बाद हमने अपने-अपने कपड़े ठीक कर लिए और अपनी-अपनी जगह पर सो गए !

दूसरे दिन रतन पम्प पर जाने के बाद जब मैं भाभी से बात करने उनके कमरे पर गया तब भाभी ने बताया कि रतन रोज दारू पीने के बाद सो जाता है और उसकी प्यास ऐसे ही अधूरी रह जाती है !

उसके बाद मैं उर्मिला भाभी को अकसर जब भी मौका मिलता, तब-तब चोदता था। मैंने रतन के दारू पीने की लत का पूरी तरह से फायदा उठा लिया था !

आज उसको 3 बच्चे है और हमारे गाँव में उसने घर बना लिया !

मैं जब भी गाँव को जाता हूँ तब उसके यहाँ जरूर जाता हूँ और घर पर कोई नहीं रहता तब उर्मिला भाभी की चूत की प्यास जरूर बुझाता हूँ !

कहानी अच्छी लगी या बुरी, प्लीज मेल कीजिये !

raj230180@gmail.com


ट्रेन का डर - train ka dar

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